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हालांकि इस खेल को पहले से लोग खेलते आरहे थे, लेकीन इस खेल को पापुलैरिटी कल्याण जी भगत ने दिलाई थी, और मटके वाला कांसेप्ट भी इस खेल में कल्याण जी भगत ने शुरू किया

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जब जब पैसे कमाने के आसान तरीके आते हैं तब तब उन कामों के साथ कुछ बुराइयां भी जन्म लेती हैं। अब मजदूर पूरे दिन बंदरगाह पर मजदूरी करके आते और शाम को पूरी मजदुरी की राशि सट्टे में लगा देते और हार जाते। आसान कमाई के चक्कर में मजदूरों को सट्टे की बुरी तरह से लत लग चुकी थी। जो मजदूर ज्यादा हारता था वो ज्यादा बडा जुआरी बन जाता क्योंकि इस खेल में रिवर्स साइकोलॉजी काम करती है। 

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दुनिया भर में भारत के कपास की डिमांड बहुत ज्यादा थी और इसी डिमांड को देखते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने बॉम्बे बंदरगाह से दुनिया को कॉटन सप्लाई करना शुरू किया। इस कॉटन की कीमत बॉम्बे बंदरगाह और न्यू यॉर्क कॉटन एक्सचेंज के द्वार तय होती थी। ये कीमत सप्लाई और डिमांड के हिसाब से घटती और बड़ती रहती थी, जैसा कि शेयर बाजार में होता है ये कांसेप्ट ठीक स्टॉक मार्केट की तरह ही था।

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